ईएमयू कामगार की व्यथा
निजीकरण का नासूर
नीरज सिंह अधिकारी विघुत फिटर, माटुंगा वर्कशॉप,
माटुंगा कारखाना में यह खबर आम हो गई है कि ईएमयू स्टाफ को सानपाडा भेजा जाएगा। स्टाफ की कमी व काम की अधिकता से परेशान ईएमयू कर्मियों के लिए यह खबर बम फूटने जैसी थी। उसमें जले में नमक का कार्य दूसरा संगठन कर रहा है जो कहता है कि दो साल में ईएमयू स्टाफ सानपाडा चला जाएगा।
क्यों जाए हम सानपाडा?
गलती क्या हुई है?
क्या हम काम नहीं करते हैं?
या कम काम कर रहे हैं?
यदि 10 वर्ष पूर्व की बात करें तो माटुंगा से 58 कोच पीओएच होकर निकलते थे, तब सेक्शन स्ट्रेंथ 1100 के करीब व कामगार 900 के करीब थे।
आज सेक्शन स्ट्रेंथ 1013 है और स्टाफ 700 के करीब है, लेकिन कोच 80-85 निकल रहे हैं। 100 कोच निकलें इस पर पूरा जोर दिया जा रहा है।
इतिहास में यदि जाएं तो 3 फरवरी 1925 को शुरु हुई ईएमयू रोजाना 150 सेवाएं देती थी व करीब सवा दो लाख यात्रियों को उनकी मंजित तक पहुंचाती थी। आज 2017 में रोजाना 1660 सेवाओं में बरीब 42 लाख लोग रोज ईएमयू से सफर करते हैं।
वर्ष 1982 में कुर्ला से यहां आने के बाद से अब तक बेसिक सुविधाओं के अभाव, सामान की कमी व बिना किसी ट्रेनिंग के, दिए गए लक्ष्य को सफलता पूर्वक हासिल किया है।
हमें गर्व है कि सुरक्षा व संरक्षा के मापदंडों पर खरा उतरते हुए जिन कोचों का हम पीओएच करते हैं सामन्यतया उनकी क्षमता 2000 से 2500 होती है, लेकिन हमारी मेहनत, लगन व सूझबूझ से इन लोकलों में 7000 से 8000 लोग सुरक्षित प्रवास करते हैं। फिर भी सानपाडा भजने की बात क्यों?
असल में इसके पीछे जो कहानी सुनने में आ रही है वो ये है कि सानपाडा कारशेड तो ठेकेदारों को देने के लिए ही बनाया गया है, लेकिन सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ के विरोध के कारण यह संभव नहीं हो पाया। तो वहां पर नए आए खलासियों द्वारा पीओएच कराने की नाकाम कोशिश की जा रही है। अब माटुंगा ईएमयू कामगारों पर मानसिक दबाव बनाया जा रहा है कि सानपाडा जाना पड़ेगा ताकि परेशान कामगार युनियन के पास जाएं और प्रशासन बीच के रास्ते के तौर पर सानपाडा ठेकेदार को देकर कामगारों को वापिस माटुंगा में भेज पीओएच करवाए यदि कोई कुछ न बोला तो माटुंगा में ठेकेदार कब्जा करेंगे, देखना यह है कि हमारे पास क्या विकल्प है।
रोज लाखों लोगों को उनकी मंजित तक पहुंचाने वाले ईएमयू कामगारों को मानसिक दबाव देना क्या ठीक है?
यदि इसी प्रकार हमारी उपेक्षा होती रही तो इसका सीधा प्रभाव काम की गुणवत्ता पर पड़ेगा। सोचिए हमारे बारे में भी। सीनियर की वाह वाही व कॉन्ट्रेक्ट देने की होड़ में कहीं कुछ गलत न हो जाए।