मैं सिग्नल बोल रहा हूं (कविता)

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एस एंड टी (खलासी), दांतिवली, ठाणे, मुंबई
मैं सिग्नल बोल रहा हूं।
अपनी आप बीती सुना रहा हूं।।
मैंने ही गाडिय़ों की स्पीड़ बढ़ाई है।
सुरक्षित यात्रा का विश्वास दिलाया है।।
मैंने ही गाडिय़ों को रास्ता दिखाया है।
यात्रियों को समय से गन्तव्य स्थान तक पहुंचाया है।।
मैंने ही गाडिय़ों की स्पीड बढ़ाने और ब्रेक लगाने का बताया है।।
कहां रुकना है कहां तेज भागना है मैंने ही बताया है।
मैंने ही सभी की सुरक्षा का जिम्मा लिया है।।
लेकिन सरकार ने आज तक सिग्नल कर्मियों को सुरक्षा नहीं दिया है।
जब मैं बीमार पढ़ जाता हूं मेरे सेवक तुरंत मुझे ठीक करते हैं।।
चाहे तेज धूप हो, बारिश, आंधी-तूफान, रात या दिन हो।
कभी भी दोडक़र मेरे पास आते हैं।।
दु:ख इस बात का है मेरे सेवकों।
सुरक्षा के लिए कुछ नहीं दिया जाता है।।
कल्पना करो बिना सिग्नल के गाडिय़ां कैसे चलेंगी।
सरकार बोलती है सिग्नल कर्मियों को सुरक्षा नहीं मिलेगी।।
मेरी आंख अभी भी रोती हैं क्योंकि,
मुझे ठीक करने के दौरान मेरे सेवकों ने जान तक गंवाई है।
फिर भी मुझे एक दिन के लिए, भी शोक मनाने नहीं दिया जाता है।।
निरंतर उनसे मेरा काम करवाया जाता है।
मैं आज इस सभा में अपने हाथ जोडक़र प्रार्थना करता हूं।
अपनी असहनीय पीड़ा को बयां करता हूं।।
हमको सब कुछ मंजूर है लेकिन,
मेरे सामने ही मेरे सेवको कों
शहीद होते नहीं देख सकता हूं।
ऐसी पीड़ा मैं वर्षों से सहता आया हूं,
पर अब नहीं सहन होता है।।
हमें सब कुछ मंजूर है बिना रुके, कार्य करते रहना मंजूर है।
पर भगवान के लिए मेरे सेवकों को बचा लीजिए।।
उनकी सुरक्षा के लिए भी नियम बनाइए।
उन्हें अपने कार्य का उचित मुआवजा दिलाइए।।

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