समस्तीपुर, कुत्ते तो कुत्ते हैं। भौंकते हैं, दुम हिलाते हैं। लेकिन, कभी-कभी वे घोड़ा बन जाते हैं। चौंकिए नहीं, यह किसी वेटनरी सर्जन का कमाल नहीं, भारतीय रेल की हकीकत है।
मुसाफिरों के साथ-साथ कुत्ते भी ट्रेनों की सवारी करते हैं, लेकिन कुत्तों के सफर के लिए रेलवे का अनोखा नियम है। इसमें छोटे कुत्ते तो ट्रेनों में बतौर कुत्ता ही सफर करते हैं, पर अगर उनका कद बड़ा है तो उन्हें घोड़ा माना जाता है।
ट्रेनों में कुत्तों को ले जाने के लिए रेल ब्रेक यान या यात्री कोच में डॉग बॉक्स का बंदोबस्त रहता है। डॉग बॉक्स में ले जाने के लिए कुत्ते का वजन 30 किलो मान कर शुल्क वसूल किया जाता है। यात्री अगर कुत्ते को अपने साथ कंपार्टमेंट में बिना डॉग बॉक्स ले जाना चाहे तो उसे 60 किलो के हिसाब से किराया देना पड़ेगा। ऐसा केवल तब होगा जब कुत्ता सामान्य कद-काठी का हो।
अगर वह लंबे-चौड़े कद का है तो शुल्क घोड़े का चुकाना पड़ेगा। रेलवे का तर्क यह है कि डॉग बाक्स में ऐसे कुत्तों को नहीं ले जाया जा सकता है। उनके लिए विशेष मवेशी वाहन का बंदोबस्त करना पड़ता है, जिसे टिकट धारक यात्री की ट्रेन के साथ जोड़ा जाता है। वाहन की दूरी के अनुसार किराया वसूल किया जाता है। लेकिन, यह तभी संभव होता है जब रेलवे के पास विशेष वाहन जोडऩे के लिए पर्याप्त संख्या में मवेशी हों।
कुत्ते का प्रभार शुल्क 30 और घोड़े का 750 रुपय
डॉग बॉक्स में कुत्ते के सफर के लिए 30 रुपये का प्रभार शुल्क है, जबकि घोड़े के लिए यह शुल्क 750 रुपये निर्धारित है। घोड़े का किराया तो अधिक है ही, उसकी बुकिंग के लिए काफी जद्दोजहद भी है। रेलवे के नियम के अनुसार ट्रेन के गंतव्य तक पहुंचने के बाद पशु को होने वाले नुकसान या उसकी हालत बिगडऩे पर इसकी जिम्मेदारी रेलवे की नहीं होती है।