हे प्रभु! कृपया ध्यान दें….

रेलकर्मियों के स्वास्थ्य की देख-रेख के लिए रेलवे में स्वास्थ्य केंद्रों का प्रावधान है। एक बड़ी धनराशि इस मद में खर्च की जाती है। देखा जाए तो स्वास्थ्य सुविधा कर्मचारियों को दिए जाने वाले पैकेज का हिस्सा है। कोई भी रेलकर्मी बीमारी की अवस्था में ही अस्पताल जाता है। घूमने-फिरने का शौक में तो वह कदापि वहां नहीं जाता। दूसरी बात यह है कि प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने कि उसकी क्षमता नहीं होती। बीमारी से परेशान, लोकल की भारी भीड़ में धक्के खाता हुआ बेचारा जैसे-तैसे अस्पताल पहुंचता है। वहां किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। मरीज से अगर प्यार के दो मीठे बोल बोल दिए जाएं तो आधी बीमारी तो उसकी वैसी ही ठीक हो जाती है। परंतु कई बार उसके साथ ठीक बर्ताव नहीं किया जाता। चिकित्सकों एवं पैरामेडिकल स्टाफ की कमी के कारण घंटो मरीज को लाइन में खड़ा रहना पड़ता है। बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं होती। अगर दाखिल हो गया तो पलंग और बिस्तर में छिपे खटमल उसका खून चूस ले लेते हैं। उसे जो भोजन परोसा जाता है उसको देखकर वह और बीमार हो जाता है। साफ-सफाई का कोई अता-पता नहीं होता। बिस्तर की चादर कई दिनों तक बदली नहीं जाती। मरीज अपना दुखड़ा किससे रोए।

यह बात समझ से परे है कि मुंबई के भायखला जैसे मुख्य स्थान पर बड़े भू-भाग पर बड़े डॉ. बाबा साहब अंबेडकर रेलवे हॉस्पिटल को क्यों नहीं लीलावती, नायर या टाटा हॉस्पिटल जैसा क्यों नहीं बनाया जाता। जहां तक फंड की बात है तो कर्मचारियों के स्वास्थ्य से बढक़र जरूरत है और क्या हो सकती है। सुरक्षित रेल यात्रा को अंजाम देने वाले रेलकर्मियों का स्वस्थ स्वस्थ रहना अत्यावश्यक है वरना दुर्घटना घट सकती है। इसके अलावा प्राइम लोकेशन पर बने इस तरह के अस्पतालों को अत्याधुनिक बनाने से बाहर के मरीज भी वहां आएंगे जिससे आमदनी के अवसर पैदा होंगे।

जब रेलवे को विश्वस्तरीय बनाने की बात चल रही है तो रेलकर्मियों को मिलने वाली सुविधाओं की उपेक्षा क्यों की जाती है। यह सवाल हर रेलकर्मी को हमेशा कचोटता रहता है।

चाहे वह रेल आवास हो, रनिंग रूम हो, रेस्ट रुम हो, हॉलीडे होम या रेस्ट हाउस हो सभी मामलों में ऐसा प्रतीत होता है कि सिर्फ यह सुविधाएं सिर्फ नाम के लिए हैं। इनमें सुधार करने की कोई संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती। रेलवे स्टेशनों को निजी क्षेत्र के हवाले कर देने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। रेलकर्मियों को मिलने वाली सुविधाओं में सुधार होना चाहिए। उनका स्टेटस बढऩा चाहिए तभी यह साधक और अधिक समर्पण और लगन के साथ रेलवे को विश्वस्तरीय बनाने में अपना योगदान औत अधिक बेहतर ढंग से दम पाएंगे और अति कुशल युवा रेलवे में नौकरी पाने की तरफ आकर्षित होंगे।

 

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