संपादकीय

डॉ. आर.पी. भटनागर

किसी भी संगठन की मजबूती कार्यकर्ताओं की भागीदारी पर निर्भर करती है। संगठन के क्रिया-कलापों में जितने अधिक कार्यकर्ता भाग लेंगे उतना ही संगठन मजबूत बनेगा। संगठन पर जितना अधिकार उसके पदाधिकारियों का होता है उतना ही अधिकार उसके सदस्यों का भी होता है। संगठन की मजबूती का मापदंड उसकी सदस्यता एवं सदस्यों की भागीदारी है। वर्तमान परिस्थितियों में जब सरकार आए दिन नए-नए तुगलकी फरमान निकालकर एवं विकास के नाम पर मजदूर विरोधी नीतियां बनाने पर तुली है ऐसे समय में टे्रड युनियनों की महत्ता अत्यधिक बढ़ गई है। ट्रेड युनियन आंदोलन को मजबूत करके ही कामगार अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं। केवल युनियन पदाधिकारियों पर दोष मढ़ देने से काम चलने वाला नहीं है। सेनापति तभी सफल होता है जब उसकी पूरी सेना पूर्ण समर्पण के साथ उसके साथ हो। सरकार की हठधर्मिता और तानाशाही रवैये के चलते केंद्रीय कर्मचारियों की अनेक समस्याएं लंबित पड़ी हैं। अनेक आश्वासनों के बाद भी 7वें केंद्रीय वेतन आयोग की मजदूर विरोधी सिफारिशों में सुधार करने में टाल-मटोल की जा रही है। सरकार कामगारों की शक्ति को कम आंकने की भूल कर रही है। ऐसे समय में कामगारों की युनियन गतिविधियों में भागीदारी अत्यंत जरूरी है। सरकार का खुफिया तंत्र इन सभी गतिविधियों पर पैनी नजर रखता है और उसकी जानकारी सरकार को मुहैया कराता है। सरकार पर दवाब बनाने एवं समस्याओं के निदान के लिए सभी कामगारों को अपने युनियन रूपी अस्त्र को और अधिक धारदार बनाना होगा। पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं को पूरे समर्पण, त्याग एवं लगन के साथ युनियन की गतिविधियों में अपनी भागीदारी बढ़ानी होगी तथा अपनी भूमिका तय करनी होगी तभी कुछ ठोस परिणाम सामने आ पाएंगे एवं कामगारों के अधिकारों की रक्षा हो पाएगी।

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