एक कदम अपने लिए | – अनुराधा उरसल

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जैसे ही मार्च महिने की शुरूआत होती है, हर जगह महिलाओं के सक्षमीकरण, उदात्तीकरण के चर्चे शुरू हो जाते है। विश्वभर में बड़े धूम-धाम से महिला दिवस मनाया जाता हैं। महिलाओं के हित के लिए बड़ी-बड़ी बातें और वादे किए जाते है। पर क्या सही में सक्षमीकरण हो रहा है?

आज हमें ये सवाल अपने आप से पूछऩे की जरूरत है क्या महिलाएं सही में सक्षम है? करोड़ों की संख्या वाले इस देश में अगर मुठ्ठीभर महिलाऐं सबल या सक्षम है तो क्या हो गया पूरी नारी जाति का सक्षमीकरण?

जब मैंने इस सवाल का जवाब ढूंढना चाहा तो मुझे जवाब तो नही मिला पर यह एहसास हुआ कि हम अभी भी सबल नहीं हैं। चलो बात अपने घर से ही शुरू करते है। हमारी मां, सासू मां को देखो क्या वो अपनी मन मर्जी से कोई निर्णय ले पाती हैं? नहीं ले पाती है, फिर वजह चाहे जो भी हो। एक उदाहरण के तौर पर देखे यो अगर हम सब्जी भी लेने जाए तो पति या बेटे की पसंद को तवज्जो देते हैं, न की अपनी खुद की या अपनी बेटी अथवा बहु की पसंद को। और उनके इस रवैये को हम गलत भी नहीं कह सकते क्योंकि यह तो उनका प्यार होता है अपने परिवार के प्रति, लेकिन क्या परिवार वाले उनके इस प्यार को उचित न्याय दे पाते हैं? मेरे खयाल से नहीं।

हर जगह महिलाओं के लिए आरक्षण है पर क्या सही में महिलाओं को इस आरक्षण का पूरी तरह से लाभ हो रहा है? चलो राजनीति की बात करते है, जैसे की हम देखते हैं ग्रामपंचायत, नगरपालिका, विधानसभा हो या फिर लोकसभा हर जगह महिलाओं के लिए आरक्षित प्रभाग होते हंै और इन सीटों पर महिला सदस्य चुनाव जीतकर आती हैं। पर चुनाव जीतने के बाद भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय कौन लेता है य़े तो सभी को पता है।

हम देखते है कि, हर एक छोटी मोटी बात पर हमें ग्राह्य (Granted) माना जाता है या उसे कुछ पता नहीं है यह कहकर अहवेलना की जाती है और इन सब के लिए कहीं न कहीं हम खुद ही जिम्मेवार हैं। तो इसका हल भी हमें ही ढूंढना होगा। जैसे की दुनियां में जो कुछ जैसे की राजनैतिक, खेलकूद, विज्ञान आदि के संबंध में खुद को अद्यतन रखना होगा और जब हमारा ज्ञान अपडेट होगा तब कोई भी हमें तुम्हे कुछ पता नहीं ये कह नहीं पाएगा।

ये तो महज कुछ उदाहरण थे पर ऐसी बहुत सी बातें है जिसमें हम खुदको मर्दों से कम आंकते है, और इसमें गलती सिर्फ मर्दों की नहीं हमारी भी है। सक्षम होने का मतलब पुरूष जाति के खिलाफ जंग छेडऩा है यह नहीं होता हैं। सबल का मतलब खुद के अस्तित्व को बनाए रखना एवं सभी को अपने अस्तित्व का अहसास करवाना है और इसके लिए हमें खुद ही प्रयास करने होंगें और इसके लिए हम अपने बच्चों को भी यह सीख देनीं होगी की नारी कोई भोग्या नहीं है, उसका उचित सम्मान करें उसके अस्तित्व को स्वीकार करें।

सभी से सिर्फ इतना ही कहना है कि, सक्षमीकरण के लिए नीति, नियम, कानून  बहुत है और भी बनेंगे, लेकिन जब-तक हम अपने अंदर से खुद में बदलाव लाने की ठान नहीं लेते तब तक हमें कोई भी नियम, कायदा या कानून सक्षम नहीं कर सकता हैं।

समय लगेगा लेकिन समाज में सकारात्मक परिवर्तन जरूर आएगा। तो चलो हम सब मिलकर एक कदम बढ़ाए खुद के लिए……..

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