कार्य को प्रगति प्रदान करने का प्रयास कभी-कभी कैसा जी का जंजाल बन जाता है। इसका जीता जागता उदाहरण है मुंबई मंडल के कारशेड। संभवता कार्यों का विकेंद्रीकरण करने का उद्देश्य यदि सीधे-सीधे देखें तो सचमुच प्रशंसनीय है कि हर संबंधित विभाग अपनी जरूरत तथा सुविधा के मुताबिक अपना कार्य अपनी योजनानुसार करवाता रहे जिससे प्रगति सुनिश्चित की जा सके। पर मुंबई के कारशेडों की हालात इससे विपरीत मालूम होते हैं। जब तक घास तथा झाडिय़ों की कटाई का कार्य इंजीनियरिंग विभाग के पास था, यदि रनिंग स्टाफ इंजीनियरिंग विभाग से झाडिय़ाँ या घास बढऩे का इशू उठाता तो कारशेड प्रबंधन भी हां में हां मिलाकर उससे अपने स्टाफ को होने वाली परेशानी की बात करता था। पर जब से यह कार्य कारशेड के पास आया है तब से तो उदासीनता कहें या कुछ और, की हद ही हो गई। 12 महीने कारशेड घास और झाडिय़ों की पैदावार की नर्सरी बन गए हैं। इनमें कुर्ला कारशेड का स्थान प्रथम है।
इन कारशेडों में दिन-रात लोकल के रैक की शंटिंग की जाती है यह शंटिंग भगवान भरोसे हो रही है। रेल मंत्री की नगरी में ही संरक्षा से खुला खिलवाड़ हो रहा है। रेल लाइनें, प्वाइंट्स आदि घास में छिपे हैं। प्वाइंट्समैंट, शंटर्स को चलने की जगह ही नहीं है। बारिश आने वाली है, कुर्ला कारशेड का मुंबई छोर बारिश भर एक आध फुट पानी में डूबा पड़ा रहेगा। पॉइंट्समैन पानी में हाथ डुबाकर अंदाज से पॉइंट लॉक करेगा। शंटर भी भगवान भरोसे आगे बढ़ जाएगा। यदि गाड़ी गिरी तो केवल शंटर या पॉइंट्समैन की गलती ढूंढकर किसी को चार्जशीट दे दी जाएगी । पर सूरदासों को वहां की घास पानी नहीं दिखेगी। 6-8 फीट लंबे सांप कारशेड में बड़ी बेफिक्री से घूमते देखे जा सकते हैं। इस भरी गर्मी में जहां इंसान और जानवर भी सूख रहे हैं वहां कारशेडों में अभी भी घास का घमासान देखा जा सकता है।
आखिर इसके पीछे क्या है? क्या निहित स्वार्थ संरक्षा से ऊपर है? या फिर आप से मैनेज नहीं होता तो इसे इंजीनियरिंग विभाग को हस्तांतरित क्यों नहीं कर देते? उपाय जो भी ढूंढे तत्काल प्रभाव से समस्या दूर करें और संरक्षा सुनिश्चित करें।